Red Chilli Benefits And Effects in hindi


लाल मिर्च खाने के ये नुकसान जानते हैं आप


लाल मिर्च पाउडर खाने से बेशक आपका मुंह जल जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं लाल मिर्च से कई हेल्थ प्रॉब्लम्स भी हो सकती है । आज हम आपको कुछ ऐसी ही हेल्थ प्रॉब्लम्स के बारे में बताने जा रहे हैं ।

मुंह संबंधी समस्याएं


लाल मिर्च खाने से मुंह संबंधी कई प्रॉब्लम्स हो सकती हैं । ये मुंह का स्वाद तक खराब कर सकती है ।

पाचन तंत्र करता है खराब


लाल मिर्च खाने से ना सिर्फ हार्टबर्न होता है बल्कि एसिडिटी भी बढ़ती है । यहां तक की पेट में जलन बढ़ जाती है ।

लाल मिर्च से होने वाले समस्याएं


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लाल मिर्च खाने से मितली तक हो सकती है । बहुत अधिक मिर्च खाने से डायरिया हो सकता है ।

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बहुत ज्यादा लाल मिर्च खाने से अस्थमा का अटैक पड़ सकता है । अगर आपको श्वसन संबंधी कोई समस्या है तो लाल मिर्च से दूर रहे ।

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लाल मिर्च खाने से बेशक पेप्टिक अल्सर और गैस्ट्रिक नहीं होता लेकिन बहुत अधिक मात्रा में मिर्च खाने से इन दोनों बीमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है ।

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लाल मिर्च का बहुत अधिक सेवन टिश्यूज में सूजन ला सकता है ।

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एक रिसर्च में तो ये भी साबित हो चुका है कि तीन पाउंड मिर्च पाउडर को एक साथ खाया जाए तो मौत तक हो सकती है ।

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गर्भावस्था के दौरान बहुत अधिक लाल मिर्च खाने से बच्चे का समय से पूर्व जन्म होने का खतरा रहता है ।

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खाना बनाने के दौरान अगर मिर्च आंख में चली जाए तो इससे काफी दर्दनाक होता है

ये रिसर्च के दावे पर हैं । Helthmemo ।blogspot ।in (Healthy India) इसकी पुष्टि नहीं करता । आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

Loss of Hair Increases Risk of Tumor in Hindi


महिलाओं के बाल झड़ना ट्यूमर का संकेत हो सकता है


जिन महिलाओं के बाल लगातार झड़ते हैं, उनमें गैर-कैंसर वाले ट्यूमर का खतरा बना रहता है । यह ट्यूमर गर्भाशय की दीवारों के भीतर होता है । जिन महिलाओं के बाल लगातार झड़ते हैं, उनमें गैर-कैंसर वाले ट्यूमर का खतरा बना रहता है । यह ट्यूमर गर्भाशय की दीवारों के भीतर होता है । सेंट्रल सेंट्रीफ्यूगल सिकेट्रिशियल एलोपेसिया (सीसीसीए) वाली महिलाओं में गर्भाशय के अंदर ट्यूमर का जोखिम पांच गुना अधिक होता है । एक नए शोध में यह पता चला है । फाइब्रॉएड गर्भाशय की दीवार पर पाए जाने वाले चिकनी पेशी के ट्यूमर हैं । वे गर्भाशय की दीवार के भीतर ही विकसित हो सकते हैं या इसके साथ जुड़े हो सकते हैं । हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (HCFI) के अध्यक्ष पद्श्री डॉ । के के (K.K.) अग्रवाल ने कहा कि फाइब्रॉएड गर्भाशय की मांसपेशी के टिश्यू में शुरू होते हैं । वे गर्भाशय की कैविटी में, गर्भाशय की दीवार की मोटाई या पेट की गुहा में बढ़ सकते हैं । फाइब्रॉएड के लिए मेडिकल शब्द है- लेय्योमायोमा । फाइब्रॉएड शरीर में स्वाभाविक रूप से उत्पादित हार्मोन एस्ट्रोजन द्वारा उत्तेजना की प्रतिक्रियास्वरूप विकसित होते हैं । इनकी वृद्धि 20 साल की उम्र में दिख सकती है, लेकिन मीनोपोज के बाद ये सिकुड़ जाते हैं, जब शरीर एस्ट्रोजेन का बड़ी मात्रा में उत्पादन बंद कर देता है । डॉ । अग्रवाल ने आगे कहा कि फाइब्रॉएड का उपचार लक्षणों, आकार, उम्र और रोगी के सामान्य स्वास्थ्य पर निर्भर करता है । यदि कोई कैंसर पाया जाता है, तो यह रक्तस्राव अक्सर हार्मोनल दवाओं द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है । कुछ खाद्य पदार्थ फाइब्रॉएड को बढ़ा सकते हैं । इसे रोकने के लिए संतृप्त वसा वाले खाद्य पदार्थो को फाइब्रॉएड रोगियों को नहीं देना चाहिए । ये वसा एस्ट्रोजेन स्तर को बढ़ा सकते हैं, जिससे फाइब्रॉएड बड़ा हो सकता है । कैफीन युक्त पेय पदार्थ गर्भाशय फाइब्रॉएड होने पर नहीं लेना चाहिए । उच्च नमक वाले फूड्स अपने आहार से दूर रखें, क्योंकि वे आपके जिगर पर दबाव डालते हैं । जिगर विषाक्त पदार्थो को हटाने और हार्मोन संतुलन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार अंग है ।

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Sleepless Nights Problem treatment in hindi


रातों में नींद नहीं आती है तो


अगर आपकी रातों की नींद उड़ी हुई है तो यह आपके लिए खतरे की घंटी हो सकती है । लगातार कम सोने से भूलने की बीमारी हो सकती है । अगर आपकी रातों की नींद उड़ी हुई है तो यह आपके लिए खतरे की घंटी हो सकती है । लगातार कम सोने से भूलने की बीमारी हो सकती है । एक नए अध्ययन के अनुसार, दिमाग के ज्यादा सक्रिय रहने से अल्जाइमर रोग के लिए जिम्मेदार एमीलॉयड बीटा प्रोटीन ज्यादा उत्पन्न होता है । शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रोटीन का स्तर बढ़ने से दिमाग में कई बदलावों के आने की संभावना होती है जिससे भूलने की बीमारी डिमेंशिया हो सकती है । अमेरिका के सेंट लुई में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसीन के रैंडल बैटमैन ने कहा, ‘‘यह अध्ययन साफ तौर पर यह दिखाता है कि मनुष्यों को कम नींद आने से एमीलॉयड बीटा प्रोटीन ज्यादा पैदा होता है और इससे अल्जाइमर रोग होने का खतरा बढ़ जाता है ।’’ यह शोध एनल्स ऑफ न्यूरोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है । वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के लिए 30 से 60 वर्ष की आयु के बीच के आठ लोगों पर अध्ययन किया जो कम सोते थे या भूलने की समस्या से जूझ रहे थे ।

ये रिसर्च के दावे पर हैं । Helthmemo ।blogspot ।in (Healthy India) इसकी पुष्टि नहीं करता । आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

Kid Eye Care Tips in hindi,


इस उपाय से बच्चों की पास की नज़र कमजोर होने से बचा जा सकते हैं


आपके बच्चे अगर स्मार्टफोन पर घंटों समय बिताते हैं, गेम खेलते रहते हैं और कम्प्यूटर या टैबलेट पर अधिक समय काम करते हैं, तो उनकी आंखों की रोशनी कमजोर पड़ने की संभावना ज्यादा रहती है । मगर चिंता छोड़िए और उन्हें खेलने के लिए बाहर भेजिए । विशेषज्ञों का कहना है कि अगर बच्चे हर रोज कम से कम दो घंटे बाहर सूरज की रोशनी में खेलते हैं, तो उनकी आंखें कमजोर होने से बच सकती हैं ।

मायोपिया (निकटदृष्टि दोष):


इस रोग में पास की नज़र कमजोर होती है । इसमें पास की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं । इस कारण दूर की वस्तुओं का प्रतिबिंब स्पष्ट नहीं बनता (आउट ऑफ फोकस) और चींजें धुंधली दिखती हैं । विशेषज्ञों के अनुसार, इस परिस्थिति का कारण है आंखों के लिए प्राकृतिक रोशनी की कमी ।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट


लंदन में मूरफील्ड्स आई हॉस्पिटल में ओप्थाल्मोलॉजिस्ट की सलाहकार एनेग्रेट डाल्मान-नूर ने कहा कि इसमें मुख्य कारण सीधे तौर पर सूरज की रोशनी में कम रहना है । जो बच्चे अधिक पढ़ते हैं, अधिक रूप से कम्प्यूटर, स्मार्टफोन और टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं और जिन्हें बाहर खेलने-कूदने का कम अवसर मिलता है, उनमें यह कमी साफ नजर आती है ।

पेरेंट्स के लिए बच्चों को इन डिवाइस के इस्तेमाल से रोकना बड़ा काम है । इसमें विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को जितना हो सके, उतने अधिक समय के लिए बाहर खेलने के लिए लेकर जाएं ।

'बीबीसी हेल्थ'(BBC health) की रिपोर्ट के अनुसार, लंदन के किंग्स कॉलेज के प्रोफेसर क्रिस हेमंड ने कहा कि हमें पता है कि आज के समय में बच्चों के बीच निकटदृष्टि दोष की समस्या आम बात हो गई है । उन्होंने कहा कि निकटदृष्टि दोष को रोकने का सही तरीका बाहर अधिक से अधिक समय बिताना है । इसमें दो घंटे बाहर बिताने से बच्चों में इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है ।
इसके साथ ही बच्चों को ओमेगा-3 की डाइट देना जरूरी है । इसके साथ ही उन्हें विटामिन-ए, सी और ई की भी जरूरत होगी, जो उनकी आंखों के लिए अच्छी होगी । विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें बच्चों की नियमित रूप से आंखों की जांच भी मददगार साबित हो सकती है ।

ये रिसर्च के दावे पर हैं । Helthmemo ।blogspot ।in (Healthy India) इसकी पुष्टि नहीं करता । आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

Almond Benefit for Health in Hindi


फाइबर की कमी दूर करने के लिए खाएं बादाम



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आमतौर पर लोगों को फाइबर की वैल्यू समझ नहीं आती । लेकिन क्या आप जानते हैं फाइबर हमारी सेहत के लिए बहुत जरूरी होता है । रेशे वाली सब्जी खाने से कई फायदे होते हैं । फाइबर की कमी दूर करने के लिए ऐसे खाएं बादाम

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फाइबर युक्त खाना खाने से कब्ज और पेट संबंधी समस्याएं कम होती हैं । फाइबर युक्त खाना खाने से ना शरीर में पानी की कमी होती है और ना ही सूजन आती है । फाइबर खाने से डायबिटीज और मोटापे की समस्या नहीं रहती । फाइबर शरीर में एसिड को मेंटेन करता है जिससे बैक्टीरिया हेल्दी रहते हैं । हेल्दी बैक्टीकरिया विटामिन बी 12 प्रोड्यूस करते हैं । फाइबर की कमी दूर करने के लिए ऐसे खाएं बादाम

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फाइबर में अपने आपमें भी कई तरह के मिनरल्स और विटामिंस होते हैं । ब्राउन राइस में विटामिन बी 6 और आयरन होता है जो कि व्हाइट राइस में नहीं मिलता है । फाइबर की कमी दूर करने के लिए ऐसे खाएं बादाम

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इसी तरह से छिलके वाली दालों में पोटैशियम होता है और बिना छिलके वाली दालों में कम पोटैशियम होता है । फाइबर की कमी दूर करने के लिए ऐसे खाएं बादाम

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बादाम भी छिलके के साथ ही खाना चाहिए, इसमें फाइबर होता है । कई लोग तो आलू भी छिलके के साथ ही खाते हैं । इससे इन चीजों की न्यूट्रिशन वैल्यू बढ़ जाती है । ज्यादातर हम फाइबर ये सोचकर हटा देते हैं कि उसको ज्यादा चबाना पड़ेगा बल्कि लोगों को ये पता होना चाहिए कि चबाने से पाचन तंत्र स्ट्रांग होता है । फाइबर की कमी दूर करने के लिए ऐसे खाएं बादाम

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फाइबर दो तरीके का होता है सोलिबल और इनसोलिबल । ओट्स में सोलिबल फाइबर होता है इससे हमारा कॉलेस्ट्रॉल लेवल कम रहता है । दलिया और वीट ब्रांड इनसोलिबल होता है इससे हमारा डायजेस्टिव सिस्टम हेल्दी रहता है । जिन दालों, फलों और सब्जियों को छिलकों के साथ खाया जा सकता है उसे छिलकों के साथ ही खाना चाहिए । इससे फाइबर की कमी नहीं होगी ।

ये रिसर्च के दावे पर हैं । Helthmemo ।blogspot ।in (Healthy India) इसकी पुष्टि नहीं करता । आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

Vitamin and Calcium effect on body in hindi


कैल्शियम(Calcium), विटामिन डी (vitamin D) की दवाओं से फ्रेक्चर का जोखिम कम हो सकता है


कैल्शियम (Calcium), विटामिन डी (vitamin D) या दोनों की दवाओं द्वारा बुजुर्गों के कूल्हे के या अन्य किसी फ्रेक्चर से बचने की संभावना कम है । एक रिसर्च में ये बात सामने आई है । कैल्शियम(Calcium), विटामिन डी (vitamin D) या दोनों की दवाओं द्वारा बुजुर्गों के कूल्हे के या अन्य किसी फ्रेक्चर से बचने की संभावना कम है । एक रिसर्च में ये बात सामने आई है ।

क्या कहती है रिसर्च


जर्नल आफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में छपे अध्ययन के अनुसार, हड्डियों संबंधी बीमारी ‘आस्टियोपोरोसिस’ से पीड़ित बुजुर्गों को फ्रेक्चर से बचने के लिए कैल्शियम और विटामिन डी की दवाओं की सिफारिश करते हैं । शोधकर्ताओं ने कहा कि पुराने अध्ययनों में दवाओं और फ्रेक्चर के जोखिम के बीच संबंध को लेकर मिले-जुले निष्कर्ष सामने आए हैं ।

कैसे की गई रिसर्च


चीन के तियानजिन अस्पताल के शोधकर्ताओं द्वारा किये गये अध्ययन में 50 से अधिक उम्र के 51145 वयस्कों (Adult) को शामिल किया गया । ये बुजुर्ग अपने परिवारों के साथ रहते हैं, किसी नर्सिंग होम या आवासीय चिकित्सा केन्द्रों में नहीं । अध्ययन में पाया गया कि दवाओं का नये फ्रेक्चर का कम खतरा होने से कोई संबंध नहीं है ।

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How to control Diabetes and Fat in Hindi


सौंफ की चाय वजन कम करने से लेकर डायबिटीज तक कम कर सकती है


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आपने ग्रीन टी, हर्बल टी, लेमन टी जैसी कई तरह की चाय के फायदे सुने होंगे लेकिन क्याआपने सौंफ की चाय के फायदों के बारे में सुना है? आज हम आपको सौंफ की चाय के फायदों के बारे में ही बताने जा रहे हैं । वजन कम करने से लेकर डायबिटीज तक कम कर सकती है सौंफ की चाय

2- वजन कम करने में मददगार

खाने के बाद तुरंत खाई जाने वाली सौंफ से आसानी से वजन कम किया जा सकता है । जहां ये डायजेशन प्रोसेस ठीक रकती है वही ये मेटाबॉलिज्म बूस्टर भी है । इससे अतिरिक्त चर्बी को बढ़ने से रोका जा सकता है । वजन कम करने से लेकर डायबिटीज तक कम कर सकती है सौंफ की चाय

3- लीवर को रखती है हेल्दी

फेनल टी लीवर को हेल्दी रखने में कारगर है । हेल्दी लीवर से कॉलेस्ट्रॉल कंट्रोल होता है । फेनल टी हार्ट फंक्शंस को ठीक रखने में मदद करती है साथ ही हार्ट रेट को ठीक रखती है । फेनल में मौजूद पौटेशियम के कारण ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल रहता है । वजन कम करने से लेकर डायबिटीज तक कम कर सकती है सौंफ की चाय

4- आंखों के लिए है फायदेमंद

सौंफ में विटामिन सी होता है जो कि आईसाइट के लिए बहुत अच्छा है । सौंफ के पानी से भी आंखों को धोना फायदेमंद होता है । वजन कम करने से लेकर डायबिटीज तक कम कर सकती है सौंफ की चाय

5- डायबिटीज के रिस्क को करता है कम

फेनल सीड्स में विटामिन सी और पोटैशियम उच्च मात्रा में होता है जो कि डायबिटीज से लड़ने में मदद करता है । ये ब्लड शुगर लेवल कम करने में भी मदद करता है । वजन कम करने से लेकर डायबिटीज तक कम कर सकती है सौंफ की चाय

6- कैंसर से बचाव

सौंफ की चाय में कई ऐसे तत्वों पाए जाते हैं जो कैंसर से बचाते हैं । सौंफ में ब्रेस्ट कैंसर, लिवर कैंसर और कोलन कैंसर के सेल्स को मारने में मदद मिलती है ।

ये रिसर्च के दावे पर हैं । Helthmemo ।blogspot ।in (Healthy India) इसकी पुष्टि नहीं करता । आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

Health Benefits of Anjeer hindi


अंजीर के ये गुण जानें और तुरंत करें आपने डायट में शामिल


आपने कई बार मार्केट में रस्सी से बंधा हुआ ड्राई फ्रूट देखा होगा इसे अंजीर के नाम से जाना जाता है । ये देखने में तो बहुत अच्छा नहीं लगता लेकिन ये है बहुत फायदेमंद । आज डॉ शि‍खा शर्मा बता रही हैं अंजीर के फायदों के बारे में ।

1.

अंजीर यानि फिग एक ऐसा ड्राई फ्रूट है जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है ।

2.

अंजीर फाइबर से भरपूर होता है ।

3.

कब्ज ही समस्या हो, इन्डायजेशन की समस्या हो तो रोजाना एक अंजीर खाना चाहिए इससे कब्ज और इन्डायजेशन की समस्या दूर होती है ।

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अंजीर में मौजूद फाइबर आंतों के लिए बहुत अच्छा माना जाता है । ये फाइबर आंतों की सूजन को कम करते हैं, उनके एसिड लेवल को कम करते हैं ।

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आयुर्वेद के मुताबिक, अंजीर एंटी-एजिंग होता है ।

6.

अंजीर में बहुत सारे विटामिंस होते हैं ।अंजीर में मौजूद विटामिन ए आंखों के लिए बहुत अच्छा होता है ।

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अंजीर बच्चों को देना भी सेफ है । बच्चों अंजीर देने से पहले अंजीर को रातभर पानी में भिगो लें । सुबह बच्चे को पानी और अंजीर दोनों दिए जा सकते हैं ।

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अंजीर को ड्राईफ्रूट्स की तरह भी खाया जा सकता है । डायबिटीक पेशेंट आसानी से अंजीर खा सकते हैं ।

ये रिसर्च के दावे पर हैं । Helthmemo ।blogspot ।in (Healthy India) इसकी पुष्टि नहीं करता । आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

Calcium Sources tips in Hindi


कैल्शियम की कमी पूरी करने के टिप्स



महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक कैल्शियम की आवश्यकता होती है क्योंकि वे उम्र के साथ हड्डियों की समस्याओं से अधिक जूझती हैं. लोगों में कैल्शियम की कमी भारी मात्रा में देखने को मिलती है. कैल्शियम की कमी आमतौर पर खानपान की बदलती आदतों के कारण होती है. खासतौर पर शहरी महिलाओं में. हाल ही में आई रिसर्च के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में शहरी महिलाओं के खानपान की आदतों में बड़ा बदलाव आया है.

क्‍या कहते हैं एक्सपर्ट-


इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मुताबिक, लोग प्रिज़रवेटिव और पैक किए हुए फूड पर ज्यादा डिपेंड हो गए हैं, इस वजह से बॉडी को प्रपोपर न्यूट्रिशन नहीं मिल पाता. ऐसे में एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि सप्लीमेंट्स की बजाय कैल्शियम युक्त़ फूड लेना अधिक से अधिक खाना चाहिए.

क्यों जरूरी है कैल्शियम


रिसर्च के आंकड़ों में पाया गया कि 14 से 17 साल की लगभग 20 पर्सेंट लड़कियों में कैल्शियम की कमी पाई गई है. दरसअल, हड्डियों का 70 पर्सेंट हिस्सा कैल्शियम फॉस्फेट से बना होता है. यही कारण है कि कैल्शियम हड्डियों की अच्छी सेहत के लिए सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व होता है. महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक कैल्शियम की आवश्यकता होती है क्योंकि वे उम्र के साथ हड्डियों की समस्याओं से अधिक जूझती हैं.

विटामिन डी के बगैर कैल्शियम लेना है व्यर्थ


कैल्शियम को अच्छे से एब्जॉर्व करने के लिए शरीर को विटामिन डी की आवश्यकता होती है. विटामिन डी की कमी वाले लोगों में, कैल्शियम की कमी की आशंका अधिक होती है, भले ही वे कैल्शियम का भरपूर सेवन कर रहे हों.

विटामिन-डी इसलिए है जरूरी


विटामिन-डी ब्लड में कैल्शियम की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार है. विटामिन-डी का पर्याप्त सेवन कैल्शियम अवशोषण को बेहतर बनाने के साथ-साथ, हड्डियों की क्षति कम करता है. फ्रैक्चर का खतरा कम करता है और ऑस्टियोपोरोसिस रोग होने से रोकता है. कैल्शियम की कमी से कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे ब्लड क्लोटिंग होना, ब्लड प्रेशर और हृदय की धड़कन बढ़ना, बच्चों में धीमा विकास, कमजोरी और थकान.

इस मात्रा में जरूरी है कैल्शियम


बुजुर्ग महिलाओं की तुलना में युवा महिलाओं को कैल्शियम की ज्यादा जरूरत होती है. 9 से 18 साल की लड़कियों को 1300 मिलीग्राम कैल्शियम और 19 से 50 साल की महिलाओं को 1000 मिलीग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है. पचास वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को 1200 मिलीग्राम की जरूरत होती है.

डॉक्टर की सलाह पर ही लें कैल्शियम


डॉ. के.के. अग्रवाल (K.K. Agrawal) ने बताया कि कई लोग डॉक्टर से सलाह के बिना कभी भी कैल्शियम की खुराक लेने लगते हैं. अगर बताई गई मात्रा में ली जाए तो यह अतिरिक्त कैल्शियम हृदय की सेहत के लिए ठीक है. हालांकि, आहार से मिलने वाले कैल्शियम पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए.”

शरीर में कैल्शियम की मात्रा बढ़ाने के टिप्स


कैल्शियम युक्त फूड का अधिक से अधिक सेवन करें.वजन बढ़ाए बिना बिना कैल्शियम की मात्रा सही रखने के लिए फैटयुक्त मिल्क ना लें.दही और पनीर के सेवन से कैल्शियम की कमी दूर कर सकते हैं लेकिन कम वसा वाली चीजों का ही चयन करें.पत्तेदार साग-सब्जियों का अधिक सेवन करें.

नोट:


आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

How to weight loss in hindi


वजन कंट्रोल करना है तो रोजाना करें नाश्ता



सुबह का नाश्ता यूं तो दिनभर फुर्तीला रहने के लिए करना चाहिए लेकिन आज हम आपको एक ऐसी वजह बताने जा रहे हैं जिसे पढ़कर आप भी रोजाना नाश्ता किए बिना घर से नहीं निकलेंगे. Benefits Of Eating Breakfast सुबह का नाश्ता यूं तो दिनभर फुर्तीला रहने के लिए करना चाहिए लेकिन आज हम आपको एक ऐसी वजह बताने जा रहे हैं जिसे पढ़कर आप भी रोजाना नाश्ता किए बिना घर से नहीं निकलेंगे. जी हां, हाल ही में आई रिसर्च के मुताबिक, सुबह का नाश्ता करने से आसानी से वजन कम किया जा सकता है.

क्या कहती है रिसर्च


रिसर्च में 50 हजार लोगों को शामिल किया गया. रिसर्च में पाया गया कि ब्रेकफास्ट के समय दिनभर में सबसे ज्यादा फूड लेने वाले लोगों का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) उन लोगों की तुलना में कम होता है जो दिनभर कम खाते हैं लेकिन रात को अधिक. अमेरिका में लोमा लिंडा यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने रिसर्च में ये भी पाया कि ब्रेकफास्ट और डिनर के बीच अधिक वक्त भी बीएमआई कम होने का कारण बन सकता है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट


जर्नल ऑफ न्यूट्रि‍शन में पब्लि‍श रिसर्च की मुख्य लेखिका हाना काहलेओवा का कहना है कि हैवी ब्रेकफास्ट करने से भूख कम लगती है. इतना ही नहीं, इससे मिठाइयों और फैट बढ़ाने वाली चीजों को खाने की ललक भी कम हो जाती है. इससे वजन बढ़ने पर रोक लगती है.

एक्सपर्ट का कहना है


रोजाना सुबह का नाश्ता लेने से तृप्ति बढ़ती है, कुल ऊर्जा खपत कम होती है, पूर्ण आहार गुणवत्ता में सुधार आता है, ब्लड लिपिड कम होता है और इंसुलिन सेंसिटिविटी और ग्लूकोज टॉलरेंस में सुधार होता है. वहीं शाम के वक्त अधिक खाने से इसके विपरीत प्रभाव होते हैं और इनसे शरीर के वजन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

एक्सपर्ट मानते हैं


लोगों को हेल्दी रहने और वजन कंट्रोल करने के लिए सुबह का नाश्ता और दोपहर का भोजन करना चाहिए, देर रात के खाने को छोड़ देना चाहिए, स्नैक्स से बचना चाहिए, दिनभर में सबसे ज्यादा फूड सुबह के नाश्ते में लेना चाहिए और रात में कम से कम 8 घंटे तक कुछ नहीं खाना चाहिए.

नोट:


आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

How to Control Diabetes in hindi


डायबिटीज के दौरान जरूरी है 'पैरों की देखभाल करें



हाल ही में आई रिसर्च के मुताबिक, टाइप 2 डायबिटीज के दौरान कम से कम 10 में से एक मरीज के पैर में क्षति की आशंका देखी गई है. ऐसे में पैरों की देखभाल बहुत जरूरी है. चलिए जानते हैं डायबिटीज के दौरान कैसे करें पैरों की देखभाल.

डायबिटीज टेस्ट


ब्लड लेवल को बैलेंस करने के लिए डॉक्टर द्वारा सुझाई गई जीवनशैली का पालन करें. इसके अलावा डायबिटीज टेस्ट करवाते रहें या घर में ही करते रहें.

पैरों की जांच करें


रोजाना पैरों की जांच करें. किसी भी लाल धब्बे, छीलन, सूजन या छाले हो तो सावधान हो जाएं और डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें.

एक्टिव रहें


रोजाना कम से कम 30 मिनट तक फीजिकल एक्टिविटी करें.

पैरों को साफ रखें


रोजाना पैरों को धोकर सावधानी से सुखा लें, खासकर पैर की उंगलियों के बीच का हिस्सा

मॉइश्चराइज करें


अपने पैरों के ऊपरी और निचली ओर मॉइस्चराइजर की एक पतली परत लगाएं. पैरों की नमी बरकरार रखने के लिए अच्छी तरह से पैरों को मॉइश्चराइज करने की जरूरत है.

कंफर्टेबल फुटवियर पहनें


नंगे पैर ना चलें. कंफर्टेबल जूते-मोजे ही पहनें. ध्यान रहे कि जूतों में कोई चुभने वाली चीज न हो.

पैरों का ब्लड सर्कुलेशन


बैठने पर पैरों को ऊपर की ओर रखें. पैर की उंगलियों को घुमाएं और अपने टखनों को पांच मिनट तक दिन में दो या तीन बार ऊपर-नीचे करें.

नोट:


आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

Milk feeding tips in Hindi


बच्चों को दूध पिलाने से पहले बरतें सावधानी

आईएमए के अध्यक्ष डॉ के के अग्रवाल के मुताबिक,

दूध की बोतल से बच्चों के दांत खराब हो सकते हैं। माताओं को हर फीड के बाद एक साफ कपड़े से शिशुओं के मसूड़े और दांत पोंछने चाहिए। अगर अनदेखा छोड़ दिया जाए तो टीथ इंफेक्श़न से हृदय संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं


नोट:


आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

Dental care tips in hindi


दांतों को हमेशा तंदरूस्त रखने के लिए करें दांतों की देखभाल




भारत में दांतों की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। हाल ही में किए गए एक शोध से संकेत मिलता है कि लगभग 95% भारतीयों में मसूड़ों की बीमारी है, 50% लोग टूथब्रश का उपयोग नहीं करते और 15 वर्ष से कम उम्र के 70% बच्चों के दांत खराब हो चुके हैं।ऐसे में दांतों की देखभाल बहुत जरूरी है। कैसे करें दांतों की देखभाल।

1

दिन में दो बार ब्रश करें।

2

फ्लॉसिंग उन दरारों को साफ करने में मदद करता है जहां ब्रश नहीं पहुंच पाता है।

3

बहुत अधिक चीनी खाने से बचें। स्टार्चयुक्त खाद्य पदार्थ भी दांतों के क्षय का कारण बन सकते हैं, क्योंकि चीनी लार में जीवाणुओं के साथ प्रतिक्रिया करके एसिड बनाती है जो दांतों के इनेमल को नष्ट कर देता है।

4

जीभ को भी नियमित रूप से साफ करें।

5

यदि मसूड़ों में सूजन हो या खून आ जाए तो एक्सपर्ट से मिलें।

6

दांतों की जांच हर छह महीने में कराएं। दांतों की सफाई और एक वर्ष में दो बार जांच-पड़ताल आवश्यक है।

नोट:


आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

Depression Treatment in Hindi,


डिप्रेशन का जल्द करें इलाज, नहीं तो हो सकती हैं ये दिक्कतें



डिप्रेशन से ग्रस्त व्यक्ति के ब्रेन स्ट्रक्चर में बदलाव का खतरा होता है. ये बदलाव दिमाग की सोचने की क्षमता को प्रभावित करता है. डिप्रेशन से ग्रस्त व्यक्ति के ब्रेन स्ट्रक्चर में बदलाव का खतरा होता है. ये बदलाव दिमाग की सोचने की क्षमता को प्रभावित करता है. हाल ही में आई रिसर्च में ये बात सामने आई है. रिसर्च के मुताबिक, डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति के दिमाग के व्हाइट मैटर में बदलाव पाया गया, जिसमें तंतु होते हैं और ये ब्रेन सेल्स को इलेक्ट्रिकल सिग्नल के सहारे एक-दूसरे से जोड़ने में सक्षम बनाते हैं. शोधकर्ताओं ने कहा कि ब्रेन वायरिंग में व्हाइट मैटर एक बेहद अहम हिस्सा है और इसमें किसी भी प्रकार की गड़बड़ी का प्रभाव इमोशंस और सोचने की क्षमता पर पड़ सकता है. इसके अलावा, डिप्रेशन ग्रस्त लोगों के व्हाइट मैटर की फोकस की कमी देखी गई है, जो सामान्य इंसान में नहीं दि‍खीं.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट


यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में सीनियर रिसर्च फैलो हीथर व्हाले का कहना है कि इस रिसर्च के मुताबिक, डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों के व्हाइट मैटर में बदलाव होता है, जो दिमाग की वायरिंग है. डॉ. कहते हैं कि डिप्रेशन का इलाज समय रहते जरूरी है ताकि बीमारियों को बढ़ने से रोका जा सके.

नोट:


आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।

Stutter (हकलाना) Problem in Hindi


क्‍या अचानक बोलते-बोलते अब आप भी अटकने लगे हैं


बोलते वक्त आपकी स्पीच में बार-बार रुकावट, फिलर शब्द या वर्बल चेंज जरूरत से ज्यादा हो तो ये मेंटल डिक्लाइन की निशानी हो सकती है और इससे अल्जाइमर रोग होने की संभावना हो सकती है। क्या आप जानते हैं कि आपका बोलना आपकी मेंटल हेल्थ के बारे में बहुत कुछ बताता है। रिसर्च के मुताबिक बोलते वक्त आपकी स्पीच में बार-बार रुकावट, फिलर शब्द या वर्बल चेंज जरूरत से ज्यादा हो तो ये मेंटल डिक्लाइन की निशानी हो सकती है और इससे अल्जाइमर रोग होने की संभावना हो सकती है। यू एस (U S) के एक रिसर्चर ने 2 साल पहले लोगों को एक टेप सेशन में डिस्क्राइब किया था। और इसके नतीजों के मुताबिक जो लोग अर्ली माइल्ड काग्निटिव इंपेरमेंट से पीड़ित होते है उनमें कम सोचने वाले लोग या जिनमें थिंकिॆग प्रॉब्लम नहीं होती उनकी तुलना से मानसिक गिरावट ज्यादा देखने को मिलती है। यूनिवर्सेटी आफ विस्कोंसीमेडिसन के स्टडी लीडर स्ट्रेलिंग जॉनसन का कहना है कि इस स्टडी में पाता चला है कि मेमोरी प्रॉब्लम के साथ लेंग्वेज प्रॉब्लम के कारण भी मानसिक गिरावट होता है। अब तक की मानसिक गिरावट के विषय में की गई स्पीच एनलिसिस( speech Analysis) सबसे बड़ी स्टडी मानी गई है और अगर ये टेस्ट कन्फर्म होता है तो मेंटल डिक्लाइन की निशानियों से पहले इसका हल निकाल सकते हैं। हालांकि जरूरत से ज्यादा चिंतित ना हो क्योंकि मेंटल डिक्लाइन उम्र के कारण भी होता है जिसमें भी चीजें याद नहीं रहती है।

नोट:


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Mental Exercise and Workout Tips in Hindi


आप भी वर्कआउट के बाद थकान महसूस करते हैं

वर्कआउट किस सोच के साथ कर रहे हैं इसका बहुत इफेक्ट पड़ता है।

हेल्दी और फिट रहने के लिए रोज वर्कआउट करना बहुत जरूरी होता है एक्सरसाइज के लिए कोई जिम जाता है तो कोई स्पोटर्स करता है तो कोई पार्क में दौड़ता है लेकिन हाल ही में आई रिसर्च में पता चला है कि ज्यादातर लोग ये मानते हैं कि एक्सरसाइज करने से बहुत थकावट होती है और स्पोटर्स में उससे भी ज्यादा मेहनत लगती है

यूनिवर्सिटी आफॅ फ्रीबर्ग के रिर्सचर हेंड्रिक मोथ्स का कहना है कि ये लोगों पर डिपेंड करता है कि उनकी एक्सपेक्टेशन क्या है वे वर्कआउट के लिए क्या विकल्प चुन रहे हैं और उसे कितना समय दे रहे हैं। साथ ही वे किस सोच के साथ वर्कआउट शुरू कर रहे हैं

रिसर्च के दौरान, 18 से 32 उम्र के 78 पुरुषों और महिलाओं को शामिल किया गया। स्टडी के दौरान उनको 30 मिनट तक साइक्लिंग करने के लिए कहा गया। वर्कआउट शुरू करवाने से पहले सबसे पूछ लिया गया कि वे कितनी देर तक वर्कआउट करने में सक्षम है। इतना ही नहीं, साइक्लिंग से पहले प्रति‍भागियों को साइक्लिंग के हेल्थ बेनिफिट्स और उसके पॉजिटिव फैक्ट्स पर एक फिल्म भी दि‍खाई गई।

रिसर्च के नतीजों में पाया गया कि जिन लोगों ने पॉजिटीव एटीट्यूट के साथ वर्कआउट करना शुरू किया वे कम तनाव में थे।

नोट:


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Macaroni and Cheese is Harmful for health in hindi


आप मैक्रोनी और चीज़ के दीवाने


मैक्रोनी और चीज़ पाउडर में ज्यादा मात्रा में खतरनाक कैमिक्लस होते हैं जिन्हें फथलेट्स कहा जाता है, ये प्लासटिक को मुलायम बनाने के काम आता है। powder

क्या आप भी मैक्रोनी और चीज़ के दीवाने हैं? क्‍या आप अपने बच्चों को मैक्रोनी और चीज़ खिलाते हैं? अगर हां, तो सावधान। जी हां, हाल ही में आई रिसर्च के मुताबिक, ऐसा करके आप अपनी और बच्चों की सेहत को खतरे में डाल रहे हैं। ये हम नहीं कह रहे बल्कि एक रिसर्च में ये बात सामने आई है।

रिसर्च के मुताबिक

मैक्रोनी और चीज़ पाउडर में ज्यादा मात्रा में खतरनाक कैमिक्लस होते हैं जिन्हें फथलेट्स कहा जाता है, ये प्लासटिक को मुलायम बनाने के काम आता है। कोलिशन फॉर सेफर फूड प्रोसेसिंग एंड पैकेजिंग और कोनसोरटियम ऑफ एन्वायरन्मेंटल हेल्थ एडवोकेसी ग्रुप की रिसर्च के दौरान पता चला है कि मैक्रोनी और चीज़ पाउडर में फथलेट्स की मात्रा चार गुना ज्यादा होती है। टेस्ट किए गए 30 प्रोडक्ट्स में से 29 प्रोडक्ट्स में ये कैमिकल पाया गया। नैचुरल चीज़ में कैमिकल की मात्रा कम होती है और प्रोसेस्ड चीज़ में कैमिकल की मात्रा ज्यादा होती है। फथलेट्स आपके घर में मौजूद बहुत से समान में होता है जैसे सोप, डिटरजेंट, नेल पेंट, रेनकोट और फ्लोरिंग। बेशक ये कैमिकल खाने की चीजों में नहीं होता लेकिन ये हमारे शरीर में कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स बॉडीवॉश और अन्य कई प्रोडक्ट्स के जरिए अलग-अलग तरह से पहुंच ही जाता है। बच्चों के खिलौनों और कुछ प्रोडक्ट्स पर फथलेट्स कैमिकल की अधिकता होने के कारण बैन लगा दिया गया। ये कैमिकल बच्चों और प्रेंग्नेंट महिलाओं की हेल्थ के लिए बहुत हानिकारक है। द सेंटर्स फॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रीवेंशन का कहना है कि इंसानों पर फथलेट्स कैमिकल के लो लेवल के इफेक्ट को अभी जांचना बाकी है। इस पर अभी और रिसर्च की जरूरत है।

नोट:


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flu problems in kids


H1N1 के कारण बच्चों में हो रही हैं दिमागी समस्याएं


डॉक्टर्स का मानना है कि H1N1 बच्चों के रेस्पिरेटरी सिस्टम के साथ ही उनके दिमाग को भी इफेक्ट कर रहा है। मुबंई में एक 10 महीने का बच्चा अपने जान-पहचान के लोगों यहां तक की अपने पेरेंट्स तक को पहचान नहीं पा रहा है। इसका कारण H1N1 वायरस माना जा रहा है जो ब्रेन को इफेक्ट कर रहा है। ऐसे में डॉक्टर्स का मानना है कि H1N1 बच्चों के रेस्पिरेटरी सिस्टम के साथ ही उनके दिमाग को भी इफेक्ट कर रहा है। पिछले एक महीने में पेड्रियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट ने H1N1 वायरस से पीडित कम से कम 5-6 ऐसे बच्चों का ट्रीटमेंट किया है जो फीवर, कोल्ड, थ्रोट इंफेक्शन के साथ ही दिमागी समस्याओं से पीडित हैं।

न्यूरो एक्सपर्ट इस बात पर जोर देते हुए सलाह दे रहे हैं कि H1N1 का इलाज करने के दौरान डॉक्टर्स को ब्रेन में होने वाली सूजन या फिर अचानक पड़ने वाले दौरे के बारे में खासतौर पर सोचना चाहिए और साथ ही बच्चे को जरूरत पड़ने पर वेंटिलेशन और आई सी यू (ICU)में रखें।

इस सबंध में एबीपी न्यू्ज़ को न्यूरो सर्जन विकास भारद्वाज ने बताया कि इस समय H1N1 वायरस बच्चों के दिमाग को बहुत इफेक्ट कर रहा है इसका कारण बताते हुए डॉ। का कहना है कि एच1एन1 वायरस न्यू‍रोट्रॉपिक वायरस हैं जो कि बॉडी के न्यूरल स्ट्रक्चर जैसे :: नर्वस, ब्रेन उन पर अटैक कर उनसे बॉडी में एंटर करते हैं। इन्सेफेलाइटिस नामक ये वायरस बच्चों को सबसे ज्यादा इफेक्ट करता है क्योंकि बच्चों का इम्यून सिस्टम इतना स्ट्रांग नहीं होता कि वो किसी भी वायरस से अचानक लड़ पाए।

H1N1 सेंट्रल नर्वस सिस्टम का इंफेक्शन है जिससे ब्रेन के फंक्शंस डिस्टर्ब हो जाते हैं। इससे बच्चों में दौरे पड़ने लगते हैं। बच्चे की याददाश्त जा सकती है। इन्सेफेलाइटिस की वजह से बच्चे़ के ब्रेन में सूजन आ जाती है। बच्चों के हायर मेंटल फंक्शंस सबसे पहले प्रभावित होते हैं। इसके बाद बाकी बॉडी फंक्शंस पर धीरे-धीरे इफेक्ट होने लगता है। आई, ईयर, वीकनेस जैसी चीजें अधिक सूजन बढ़ने पर आती है। स्पीच पर भी फर्क आ सकता है। बेहोशी की हालत होने लगती है। कम बोलना शुरू होना आता है।

आपको बता दें, इस साल महाराष्ट्र में H1N1 तेजी से फैल रहा है और अब तक 300 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।

नोट:


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Long Time Work in Office is Dangerous in hindi


क्या ऑफिस में घंटो-घंटों तक काम करते हैं


हाल ही में आई रिसर्च के मुताबिक, अधिक घंटों तक काम करने से दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है। Long working days can cause heart problems, study says क्या आप भी ऑफिस में देर तक काम करते हैं? क्या आपके काम के घंटे बढ़ गए हैं? अगर हां तो आपको सावधान होने की जरूरत है। जी हां, ऐसा होने से आपकी सेहत को नुकसान पहुंच सकता है।

क्या कहती है रिसर्च

हाल ही में आई रिसर्च के मुताबिक, काम का समय बढ़ जाने से दिल की धड़कन पर बहुत इफेक्ट होता है। अधिक घंटों तक काम करने से दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है। इस कंडीशन को आट्रियल फाइब्रलेशन के नाम से जाना जाता है। आट्रियल फाइब्रलेशन स्ट्रोक और हार्ट फेल का कारण भी बन सकता है। रिसर्च के मुताबिक, जो लोग सप्ताह में 35 से 40 घंटे के बजाय 55 घंटे काम करते हैं उनमें आट्रियल फाइब्रलेशन होने की आशंका तकरीब 40% बढ़ जाती है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर मिका किविमाकी का कहना है कि आट्रियल फाइब्रलेशन का खतरा पुरुषों में 40% और अधिक रहता है। इसके अलावा जिनकी उम्र ज्यादा है, जिन्हें डायबिटीज, हाई ब्ल्डप्रेशर की समस्या है, मोटापे से ग्रसित हैं, फीजिकल एक्टिविटी नहीं करते, धूम्रपान करते हैं और दिल के रोगों से पीडित हैं, उन्हें भी आट्रियल फाइब्रलेशन होने का खतरा 40% अधिक रहता है। ‘यूरोपियन हार्ट जनरल’ में पब्लि‍श इस रिसर्च में कहा गया कि आट्रियल फाइब्रलेशन स्ट्रोक के विकास और स्वास्थ्य पर दूसरे प्रतिकूल असर डालता है। इसमें हार्ट फेल्योर और स्ट्रोक से जुड़े डेमेंशिया शामिल हैं।

नोट:


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how weight loss tips in hindi


अचानक डायटिंग करने से हो सकते हैं ये नुकसान


क्या आप जानते हैं डाइटिंग करना सिर्फ कुछ ही समय के लिए लाभदायक होता है. How crash diets harm your health

आज के दौर में डाइटिंग करना बहुत से लोगों के लाइफस्टाइल का हिस्सा बनता जा रहा है. कोई अपनी डायट में ग्लूटन बैन करता है तो कोई शुगर. लेकिन क्या आप जानते हैं डाइटिंग करना सिर्फ कुछ ही समय के लिए लाभदायक होता है. रिसर्च में माना गया है कि डाइटिंग करके वजन घटाने वाले लोगों का वजन कुछ ही साल में उतना ही बढ़ जाता है जितना की वो घटाते हैं.

डायटिशियन एंडी बेलाटी और एक्सरसाइज साईंटिस्ट फिलिप स्टेनफोर्थ का कहना है कि डाइट में कोई भी परिवर्तन लाने से पहले सिर्फ एक रूल को फोलो करें जिसे आप अपनी पूरी जिंदगी भर के लिए लागू कर सकते है. जो कोई भी वजन घटाने के लिए एक हफ्ते का क्रैश डाइट करता है कुछ ही महीने बाद उसका वजन डबल हो जाता है. इसलिए डायटिशियन सुझाव देते है कि डायट में कोई भी परिवर्तन ला रहे हैं तो उसे कम से कम दो से चार साल तक जारी रखें. हेल्दी रहने के लिए डायट में बदलाव कर रहे हैं तो अपनी डायट में सब्जियां ज्यादा शामिल करें. को‍शिश करें कि अधिक से अधिक वॉक करें. शुगर ड्रिंक्स, सोडा ड्रिंक्स एवॉइड करें

नोट:


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know about brain tumour in hindi


बच्चों में बढ़ रहे हैं ब्रेन ट्यूमर (brain tumour) के मामले, कैसे बचा सकते हैं बच्चों को


देश में हर साल करीब 40,000 से 50,000 लोगों में ब्रेन ट्यूमर (brain tumour) की पहचान होती है, जिनमें से 20% बच्चे होते हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ( IMA ) का कहना है कि देश में हर साल करीब 40,000 से 50,000 लोगों में ब्रेन ट्यूमर (brain tumour) की पहचान होती है, जिनमें से 20% बच्चे होते हैं। चिंता की बात यह है कि पिछले साल ये आंकड़ा केवल 5% ही ऊपर था। साथ ही, हर साल लगभग 2,500 भारतीय बच्चों में मेडुलोब्लास्टोमा रोग पाया जा रहा है।

क्या है मेडुलोब्लास्टोमा

आईएमए के अनुसार, मेडुलोब्लास्टोमा बच्चों में पाया जाने वाला एक घातक प्राथमिक ब्रेन ट्यूमर (brain tumour)है। यह मस्तिष्क मेरु द्रव (सीएसएफ) के माध्यम से फैलता है। ये दिमाग और रीढ़ की हड्डी की सतह से होता हुआ अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता है। यदि इसका इलाज़ सही ढंग से किया जाता है, तो इन मामलों में से लगभग 90% का इलाज संभव है। शोधों से पता चलता है कि मस्तिष्क ट्यूमर ल्यूकेमिया के बाद बच्चों में पाया जाने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर है।

ब्रेन ट्यूमर के कारण(brain tumour)

आईएमए के अध्यक्ष डॉ। के। के। अग्रवाल का कहना है कि मस्तिष्क क्षति किसी भी उम्र में हो सकती है और यह एक गंभीर समस्या है। इससे सोचने, देखने और बोलने में समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। ब्रेन ट्यूमर का एक छोटा सा हिस्सा आनुवंशिक विकारों से जुड़ा हुआ है। बाकी लोगों को यह किसी विषाक्त पदार्थ के सेवन, मोबाइल तरंगों जैसी किसी अन्य कारण से भी हो सकता है।

ब्रेन ट्यूमर (brain tumour) के लक्षण

डॉ। अग्रवाल ने कहा, “ट्यूमर यदि ब्रेन स्टेम या किसी अन्य भाग में है, तो हो सकता है कि सर्जरी संभव न हो। जो लोग सर्जरी नहीं करवा सकते उन्हें अन्य उपचार मिल सकता है। इसके लक्षणों में प्रमुख है- बार-बार उल्टी आना और सुबह उठने पर सिर दर्द होना। इसे जांचने में चिकित्सक कभी गैस्ट्रो या माइग्रेन भी मान बैठते हैं।”

बच्चों में मेडुलोब्लास्टोमा रोग के लक्षण

मेडुलोब्लास्टोमा रोग से पीड़ित बच्चे अक्सर ठोकर खाकर गिर जाते हैं। उन्हें लकवा भी मार सकता है। कुछ मामलों में, चक्कर आना, चेहरा सुन्न होना या कमजोरी भी देखी जाती है।

मेडुलोब्लास्टोमा में दवाएं ही काफी नहीं

डॉ। अग्रवाल ने बताया, “मेडुलोब्लास्टोमा से पीड़ित बच्चों के लिए सिर्फ दवाएं ही काफी नहीं होती। यह सुनिश्चित करें कि ट्यूमर वापस तो नहीं आया, कोई दुष्प्रभाव तो नहीं हो रहा और बच्चे के समग्र स्वास्थ्य पर नजर रखने की जरूरत है। अधिकांश बच्चों को इस बीमारी के इलाज के बाद ताउम्र चिकित्सक के संपर्क में रहने की जरूरत होती है।”

बच्चों में कैंसर को रोकने के उपाय

रसायनों और कीटनाशकों के जोखिम से बचें। यह गर्भवती मांओं के लिए विशेष रूप से जरूरी है।फलों और सब्जियों का सेवन करें और नियमित रूप से व्यायाम करें।धूम्रपान और मदिरापान से दूर रहें।

नोट:


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Brain Tumour symptom in hindi


ब्रेन ट्यूमर के कारण(brain tumour)


आईएमए(IMA) के अध्यक्ष डॉ। के। के। अग्रवाल का कहना है कि मस्तिष्क क्षति किसी भी उम्र में हो सकती है और यह एक गंभीर समस्या है। इससे सोचने, देखने और बोलने में समस्याएं उत्पन्न हो सकती है। ब्रेन ट्यूमर का एक छोटा सा हिस्सा आनुवंशिक विकारों से जुड़ा हुआ है। बाकी लोगों को यह किसी विषाक्त पदार्थ के सेवन, मोबाइल तरंगों जैसी किसी अन्य कारण से भी हो सकता है।

ब्रेन ट्यूमर (brain tumour) के लक्षण

डॉ। अग्रवाल ने कहा, “ट्यूमर यदि ब्रेन स्टेम या किसी अन्य भाग में है, तो हो सकता है कि सर्जरी संभव न हो। जो लोग सर्जरी नहीं करवा सकते उन्हें अन्य उपचार मिल सकता है। इसके लक्षणों में प्रमुख है- बार-बार उल्टी आना और सुबह उठने पर सिर दर्द होना। इसे जांचने में चिकित्सक कभी गैस्ट्रो या माइग्रेन भी मान बैठते हैं।”

बच्चों में मेडुलोब्लास्टोमा रोग के लक्षण

मेडुलोब्लास्टोमा रोग से पीड़ित बच्चे अक्सर ठोकर खाकर गिर जाते हैं। उन्हें लकवा भी मार सकता है। कुछ मामलों में, चक्कर आना, चेहरा सुन्न होना या कमजोरी भी देखी जाती है।

बच्चों में कैंसर को रोकने के उपाय

रसायनों और कीटनाशकों के जोखिम से बचें। यह गर्भवती मांओं के लिए विशेष रूप से जरूरी है।फलों और सब्जियों का सेवन करें और नियमित रूप से व्यायाम करें।धूम्रपान और मदिरापान से दूर रहें।

नोट:


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Childhood obesity prevention in hindi


जन्म के समय बच्चे का वजन ज्यादा है तो हो जाएं सावधान

हाल ही में आई एक रिसर्च के मुताबिक, जिन बच्चों का जन्म के समय वजन ज्यादा होता है उनके बाद में मोटे होने की आशंका अधिक होती है।

क्या कहना है एक्सपर्ट का


अमेरिका की वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल के मार्क डेबोयर का कहना है कि हमें उम्मीद है कि इन आकड़ों की मदद से डॉक्टर्स, परिवार और उनके छोटे बच्चों में वजन बढ़ने संबंधी समस्याओं को हेल्दी (healthy) लाइफस्टाइल अपनाकर शुरूआत से ही कंट्रोल किया जा सकेगा।

कैसे की गई रिसर्च


‘पीडियाट्रिक ओबेसिटी’ मैग्‍जीन में पब्लि‍श हुई इस रिसर्च को अमेरिका के 10,186 बच्चों पर किया गया। इसमें प्रीमैच्योर और समय पर जन्म लेने वाले दोनों तरह के बच्चों पर स्ट्डी हुई।

रिसर्च के नतीजे


रिसर्च के नतीजों में पाया गया कि तय समय पर अधिक वजन के साथ जन्म लेने वाले बच्चों के मोटा होने की आशंका अधिक देखी गई। वहीं सामान्य वजन वालों में ये संभावना कम दि‍खी। वहीं प्रीमैच्योर बच्चे जो अधिक वजनी थे, में भी मोटा होने के लक्षण दिखे। रिसर्च में देखा गया जिन बच्चों का जन्म के समय वजन 4 या 5 किलों से ज्यादा था, उनमें औसत वजन वाले बच्चों की तुलना में 69 % ज्यादा मोटापा होने की आशंका होती है।

नोट:


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Blood Donation useful for health know in hindi


ब्लड डोनेट(Blood Donate) करने से पहले इन बातों का ध्यान रखें

ब्लड डोनेट(Blood Donate) करने से पहले कई बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। आज हम आपको बता रहे हैं रक्तदान से पहले किन चीजों का ध्यान रखें। Blood Donation Tips: Before, During & After

ब्लड डोनेट(Blood Donate) तब होता है जब एक हेल्दी व्यक्ति स्वेच्छा से अपना रक्त देता है और ट्रांसफ्यूजन के लिए उसका उपयोग होता है या फ्रैकशेनेशन नामक प्रक्रिया के जरिये दवा बनाई जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं ब्लड डोनेट(Blood Donate) करने से पहले कई बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। आज हम आपको बता रहे हैं रक्तदान से पहले किन चीजों का ध्यान रखें।

ब्लड डोनेट(Blood Donate) करने से पहले कुछ टेस्ट किए जाते हैं। इन टेस्ट के जरिए जाना जाता है कि ब्लड डोनर का ब्लड ग्रुप क्या है। डोनर (DONNER)को हिपेटाइटिस बी, सी वायरस( C VIRUS), एचआईवी (HIB), वीडीआरएल (BDRL), मलेरिया जैसी कोई गंभीर समस्या ना हो। इसके अलावा माइनर ब्लड ग्रुप और न्यूक्लिक एसिड एम्पलीफिकेशन टेस्ट भी किए जाते हैं।व्यक्ति का ब्लडप्रेशर, हीमोग्लोबिन, और वेट स्टेबल हो तभी उसे ब्लड डोनेट (Blood Donate)करने देना चाहिए।ब्लड डोनेट करने से पहले कुछ खा लें। इससे तकरीबन 24 घंटे पहले शराब या धूम्रपान का सेवन ना करें। खूब पानी पीएं। इससे आपके शरीर में रक्तदान के बाद पानी की कमी नहीं होगी। सोडा ड्रिंक ना लें।ब्लड डोनेशन(Blood Donate) के तुरंत बाद अधिक मेहनत वाला कोई काम न करें।


नोट:


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Improving your sleep habits in hindi


अच्छी नींद लेने से इन समस्याओं से बच सकते हैं

एकाग्रता में कमी से संबंधित 'हाइपरएक्टिविटी डिस्ऑर्डर' (एडीएचडी) होता है। हाल ही में आई रिसर्च के मुताबिक, इस डिस्ऑर्डर को नींद का पैटर्न ठीक कर सही किया जा सकता है। could be key to treating ADHD: study अक्सर देखा गया है कि बच्चे जल्दी से चीजों पर फोकस नहीं कर पाते। क्या आप जानते हैं फोकस की कमी होना एक समस्या‍ है। जी हां, एकाग्रता में कमी से संबंधित हाइपरएक्टिविटी डिस्ऑर्डर (ADHD) होता है। हाल ही में आई रिसर्च के मुताबिक इस डिस्ऑर्डर को नींद का पैटर्न ठीक कर सही किया जा सकता है।

क्या कहती है रिसर्च

मडरेक चिल्ड्रेंस रिसर्च इंस्टीट्यूट (MCRI) द्वारा की गई एक रिसर्च में ये बात सामने आई कि 70% ऐसे बच्चों में एडीएचडी के लक्षण पाए गए, जिन्हें नींद की कोई ना कोई समस्या थी।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

इस रिसर्च के मुख्य शोधकर्ता मेलिस्सा मुलरेनी के अनुसार, सोने के पैटर्न को बदलकर और सोने का समय निश्चित कर एडीएचडी पीड़ित बच्चों में इस समस्या को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। मुलरेनी का कहना है कि सामान्यतौर पर भी यदि आप अच्छी तरह से नहीं सो पाते तब भी आप एडीएचडी (HDAD)की शिकायत के बगैर भी अच्छी तरह से फोकस नहीं कर पाएंगे।” रिसर्च में ये भी पाया गया कि जिन बच्चों में अच्छी आदतें होती है वे रात में सोते समय बहस नहीं करते और ना सिर्फ अच्छी नींद लेते हैं बल्कि लंबे समय तक भी सोते हैं, जबकि दिन में ऐसे बच्चे ज्यादा चौकन्ने रहते हैं और कम सोते हैं।

नोट:


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Preventing Obesity in Children in Hindi


बच्चों में मोटापा, इन बातों का रखें ख्याल

आजकल की लाइफस्टाइल का इफेक्ट सिर्फ कामकाजी लोगों पर ही नहीं बल्कि बच्चों पर भी पड़ रहा है। यही कारण है कि बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है। बच्चों में मोटापा बढ़ने का सबसे बड़ा कारण खराब जीवनशैली, खराब खानपान, जंक फ़ड का अधिक सेवन, हर समय गैजेट्स का उपयोग, लेजीनेस है। आज हम आपको कुछ टिप्स बता रहे हैं जिससे बच्चों में मोटापे की समस्या को कम किया जा सकता है।

रोक-टोक ना करें-


बच्चे को बार-बार मोटापे के कारण टोकिए मत। बार-बार टोका-टाकी से उनका आत्मविश्वास कम होने लगता है।

रोल मॉडल बनें-


बच्चो को हेल्दी रखने के लिए खुद हेल्दी खाना खाएं इससे वे भी मोटिवेट होंगे।

तुलना ना करें-


अक्सर माता-पिता अपने बच्चे की तुलना दूसरों के बच्चों से करते है जो गलत है। पढ़ाई का मामला हो, रहन-सहन को हो या मोटापे का। किसी भी मामले में अपने बच्चे की तुलना ना करें।

बच्चों को एक्टिव करें-


आज के बच्चे गैजेट्स की दुनिया में इतने मग्न रहते हैं कि वह आलसी हो जाते है। उन्हें बाहर खेल-कुद से जोडें रखें और एक्टिव बनाएं।

खाने का रखें ध्यान-


अपने बच्चे को डाइट प्लान के अनुसार खाना खिलाए। बच्चे को रोजाना का रूटीन बनाकर हेल्दी फूड उसकी डायट में शामिल करें।

फास्ट-फूड ना दें-


बच्चों को पिज्जा-बर्गर जैसे फास्ट फूड खाने का शौक होता है इसलिए जितना हो सके बच्चों को घर का बना हुआ खाना ही खिलाएं।

नोट:


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Cholesterol Control Tips in Hindi


Cholesterol Control Tips in Hindi

बैड कॉलेस्ट्रॉल को कम करे

आजकल के लाइफस्टाइल में बैड कॉलेस्ट्रॉल बढ़ना आमबात है। बैड कॉलेस्ट्रॉल के बढ़ने से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। एक्सपर्ट की मानें तो हाई कॉलेस्ट्रॉल ओवरऑल सेहत के लिए नुकसानदायक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कुछ सुपरफूड्स के जरिए आप आसानी से कॉलेस्ट्रॉल कम कर सकते हैं।

ओटमील-


ब्रेकफास्ट में एक बॉउल ओटमील खाना कॉलेस्ट्रॉल कम करने का बेहतर आइडिया है। ओटमील में सोलेबल फाइबर हाई लेवल का होता है जो कि कॉलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता है। रोजाना ओटमील खाने से कार्डियोवस्कुलर डिजीज़ और टाइप टू डायबिटीज का रिस्क भी कम हो जाता है।

बादाम-


रोजाना बादाम के सेवन से गुड कॉलेस्ट्रॉ़ल बढ़ने लगता है और बैड कॉलेस्ट्रॉल कम होने लगता है। सलाद, दही और सीरियल में भी बादाम को पीस कर डाला जा सकता है। एक मुट्ठी भर बादाम का रोजाना सेवन करना चाहिए। अखरोट और फ्लैक्स सीड्स खाने से भी बैड कॉलेस्ट्रॉल लेवल कम होता है।

ग्रीन टी-


रोजाना कुछ कप ग्रीन टी पीकर आप आसानी से कॉलेस्ट्रॉल कम कर सकते हैं। आप चाहे तो ग्रीन टी के सप्लीमेंट्स भी डॉक्टर की सलाह पर ले सकते हैं।

ऑरेंज जूस-


स्वीट, टैंगी ऑरेंज जूस में कॉलेस्ट्रॉल को कम करने की क्षमता होती है। रोजाना 2 से 3 कप ऑरेंज जूस लें। ध्यान रहें जूस ताजा हो पैक्ड ना हो। अगर आप जूस नहीं पी पा रहे तो रोजाना कम से कम एक संतरा जरूर खाएं।

सैमन फिश-


ओमेगा 3 फैटी एसिड से भरपूर सैमन मछली खाने से भी कॉलेस्ट्रॉल को आसानी से कम किया जा सकता है। ये हार्ट डिजीज़ के रिस्क को भी कम करता है। एक सप्ताह में कम से कम एक बार सैमन फिश जरूर खाएं। फिश बेक्ड और ग्रिल्ड करके खाना ज्यादा अच्छा है। आप चाहे तो फिश ऑयल सप्लीमेंट्स भी डॉक्टर की सलाह पर खा सकते हैं।

सोयाबीन और सोया प्रोडक्ट्स-


सोयाबीन और सोया प्रोडक्‍ट्स प्रोटीन से भरपूर होते हैं। जो लोग हाई कॉलेस्ट्रॉल से गुजर रहे होते हैं उनके लिए सोया बेस्ट सुपरफूड है। बेशक सोया टोटल कॉलेस्ट्रॉल को कम ना करे लेकिन वो बैड कॉलेस्ट्रॉल को जरूर कम कर देता है। सोया में फाइबर, विटामिन, मिनरल्स और सैचुरेटिड फैट्स का लोअर लेवल होता है।

नोट:


आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें ।